रविवार, 4 अक्तूबर 2009

मछलियाँ




इस समय
कहाँ होंगी मछलियाँ ?
मैं नहीं देख सकता मछलियों को
पर वे हैं समुद्र के नीले फेनिल जल में
वे कहीं दूर हैं
वे वहाँ भी होंगी
जहाँ मछुआरों की नावें हैं
लाल गेंद सा तेज़ी से नीचे गिरता सूरज है
वे कहीं भी होंगी बेचैन समुद्र में
मैं उन्हें देख नहीं सकता
मेरे पाँवों तक आने वाली लहरों में
अपने हाथों में जीवित धड़कते हुए

बच्चे सागर तट के रेत में
खोजते हैं सीपियाँ
टूटे हुए शंख और मूँगे के टुकड़े
वे क्यों नहीं खोजते मछलियाँ ?
यही तो समय है
जब उन्हें मिल सकती हैं मछलियाँ
क्योंकि बच्चों को देख कर
हँसती हैं मछलियाँ
निश्शंक लहरों पर नाचती हैं मछलियाँ

जैसे ही आकार पाएँगे बच्चों के सपने
बचपन खिसक जाएगा
मुट्ठी से बालू की तरह और
बच्चे बन जाएँगे मछुआरे
काठ की नाव लेकर
दिशा-दिशा दौड़ जाएँगे मछुआरे
पसीने का नमक घोल कर पानी में
कई गीत गाएँगे मछुआरे
भोर से चन्द्रमा की छाया तक
उनके जाल में नहीं आएगी कोई मछली
उनकी हताश आँखों में
धमनियों में, शिराओं में
तड़पती रहेंगी सोन मछलियाँ

फेंक कर जाल
रेत में घसीट कर नाव
लड़खड़ाते पाँव
वे लेट जाएँगे लहरों के सामने........
समुद्र में लौट आएँगी मछलियाँ
उनके लहू में तैर जाएँगी मछलियाँ
उस दिन
किनारे तक आएँगी मछलियाँ......