गुरुवार, 6 अगस्त 2009

एक पड़ाव यह भी


वही समय था उस दिन भी : सुबह के पांच
शायद जाग रही थी पत्नी आँखें बन्द किए अपने तिलिस्म में
दूसरे कमरे में सपनीली नींद में सोईं थी दोनो बेटियां
अपने मोबाइल फोन स्विच ऑफ किए
उठते हुए मुझे याद था इस नए पड़ाव का आना
पर खुशी नहीं थी जरा भी

बाथरूम के दर्पण में था
एक थका, मुरझाया चेहरा
चश्मे के नीचे धंसी आंखें
जिनमें तैर कर डूब चुके थे कितने ही सपने
एक ऐसा शरीर जो बूढ़ा-सा लगने लगा था वक्त से पहले
क्या कोई प्रतीक्षा करता है बुढ़ापे की ?

मां जो इस समय भोर के धुंधलके में
किसी कोने में बैठी
फेर रही होतीं तुलसी की माला
जिंदा होतीं तो जरूर लाद देतीं स्नेह और आशीर्वाद से
याद दिलातीं बचपन में किस तरह मुहल्ले भर में
मोतीचूर के लड्डू बांटतीं थीं मेरे हर एक जन्म दिन पर
बूढ़ी औरतें कामना करतीं
सौ वर्ष जीने की
पता नहीं उन्हें मालूम था भी कि नहीं
उम्र बढ़ती है जिन्दगी को पीछे धकेल कर
उम्र का पर्याय ही तो थीं मां
जो दिवंगत हुईं कुछ वर्ष पहले बुढ़ापे का बोझ ढोते-ढोते

अगर पत्नी को याद रहता तो कहती -
हैप्पी बर्थडे – क्यों मुँह लटकाए हुए हो
मुझे देखो, क्या हाल हो गया है
हमारी उम्र में कितने मस्त हैं लोग
अपना-अपना भाग्य है

बेटियां जाग जातीं तो लिपट जातीं स्नेह से
मां की तरह दुलारतीं
चाकलेट निकाल कर लातीं अलमारियों से
पापा को देतीं वे सब गिफ्ट्स जो उन्हें पसन्द हों
नम हो जातीं आंखें यह सोच कर
जब ये चली जाएंगी अपने घर
फिर क्या रह जाएगा जीने का अर्थ

उस दिन उन क्षणों में कुछ भी नहीं हुआ ऐसा
किसी ने नहीं दी सांत्वना
किसी ने नहीं की शिकायत
किसी ने नहीं कहा- हैप्पी बर्थडे पापा...

मैं चुपचाप निकल गया सुबह की सैर पर

घर से बाहर वैसी ही उदास सुबह थी
बादलों से घिरा आकाश और हवा का नामोनिशान नहीं
सड़क के किनारे और घरों की मुंडेरों पर
पेट में चमकती भूख लिए
टहल रहीं थीं बेचैन काली - सफ़ेद आवारा बिल्लियां
संभव है उनमें से भी किसी का जन्म दिन रहा हो आज
वे बाट जोह रहीं थीं घरों के कचरे से मिलने वाले भोजन की
वे नहीं रखतीं फिज़ूल का हिसाब किताब
बिल्लियां ठीक से समझतीं हैं अपनी ज़रूरतें
उन्हें प्रतीक्षा नहीं थी सूर्योदय की

उदास,अकेला और आत्मकेन्द्रित मैं
कमर पर अनिश्चय का बोझ लादे
उस दिन भी
प्रतीक्षा कर रहा था
एक ऐसे सूर्योदय की जिसे होना ही था .....

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति. आभार.

    चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.

    गुलमोहर का फूल

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  2. मन के कोठार में झांकती...
    वाकई एक उदास, अकेली और आत्मकेन्द्रित कविता...

    हालांकि बिल्लियों के जरिए एक संभावना खोजती हुई...

    शुभकामनाएं....

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  3. bahut khoob!apne jis tarah se adhunik manav ki isthiti to rekhankit kiya hai main us ka kayal ho gaya hoon!
    any way Happy Birthday and myriad compliments on your poem/

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  4. Bahuthi sanjeeda, dard bhare alfaaz..

    http://shamasansmaran.blogspot.com

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  5. इतने बरस हुए
    ग़ज़लों से भरे इस उपमहाद्वीप में
    मुझे एक भूले हुए मिसरे का अब भी इंतजार है .

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