मंगलवार, 15 सितंबर 2009

कविता संभव


कविताएं अक्सर मिलती हैं मुझे


बिजली के तारों में फंसी पतंगों की तरह

उन्हें देखते ही मैं भूल जाता हूँ

अपने सारे दायित्व

और कंधों से फिसलने लगतें हैं सभी बोझ

जिन्हें ढोना है मुझे अपने अन्तिम सांस तक


उन क्षणों में

मैं सोच ही नहीं पाता

बिजली के तारों में छिपी है मौत

और उनकी ऊंचाई है मेरे क़द से छह गुना

मुझे ललचाते हैं पतंग के रंग

तिकौना आकार

और हवा में तैरती उसकी छोटी सी पूंछ


किसी जिद्दी बच्चे की तरह बैठ जाता हूँ वहीं

सब कुछ भूल कर सोचने लगता हूँ कोई जुगाड़

कि मुझे उतारनी है बस वही पतंग

जो फंसी है बिजली के तारों में


तेजी से बटोर कर लाता हूँ

पेड़ों की टहनियां और बबूल के कांटे

अब मुझे चाहिये सिर्फ़ एक डोर

ताकि मैं जोड़ सकूं टहनियों को

कि वे पहुंच सकें पतंग तक


मुझे मिलती नहीं डोर

क्योंकि वह लगती नहीं दरख्तों पर

उगती नहीं मिट्टी में

पर मैं पतंग को छोड़ नहीं सकता इसतरह

फंसे हुए बिजली के तारों में

बच्चे हंसते हैं मेरे उपक्रम पर

बड़े डाँटतें हैं मामूली सी पतंग के लिए इतनी बेचैनी क्यों

कोई नहीं भटका पाता मुझे


भीड़ की परवाह न करते हुए

आखिर मैं खींच लेता हूँ एक डोर

पायजामे का इजारबन्द जोड़ देता है टहनियों को

और तैयार हो जाती है जुगत

पतंग को छोड़ कर लोग देखने लगते हैं मेरा आदिम स्वरूप

और मैं विजयी भाव से पतंग लिए लौटता हूँ अपने घर


कविताएं अक्सर मिलतीं हैं मुझे

पतंगों की तरह फंसी बिजली के तारों में

उन्हें पाकर फिर कुछ नहीं मांगता मैं

ईश्वर भी नहीं

4 टिप्‍पणियां:

  1. kamaal ki prastutikaran ............bahut hi sundar likhte hai baato me gaharaee bhi bahut hai.....andaaj bhi nirala hai....

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  2. किसी जिद्दी बच्चे की तरह बैठ जाता हूँ वहीं

    सब कुछ भूल कर सोचने लगता हूँ कोई जुगाड़

    कि मुझे उतारनी है बस वही पतंग

    जो फंसी है बिजली के तारों में

    यह कविता है तो लेख कैसा होगा|
    कविता नहीं जिंदगी लगी मुझे तो।
    शैली गज़ब की है।
    विशय का सम्बंध भी बहुत खूब लगा।
    यूं ही शब्दों से हम जैसों की प्यार बूझाते रहें।
    धन्यवादी।
    शुभाकांक्षी

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  3. LAJAWAAB ........ SHABDON SE JAISE JAADO KAR DIYA ........ GAZAB KA LIKHA HAI ... RATHART KAVITA ....

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  4. कासिद बनकर आया है बादल,
    कुछ पुराने रिश्ते साथ लाया है ;
    आसमान से आज कई यादें बरसेंगी ..........

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